रामराज सिंह बक्सर:केसठ प्रखंड को भले ही जिला प्रशासन ओडीएफ करारकर बाहवाही का तागमा हासिल किया हो लेकिन सचाई कुछ अलग ही बयां करती है। रोड किनारे फैली गंदगीओं को देख आज भी ग्रामीण नाक पर रुमाल रखकर ही पार करना मुनासिब समझते हैं। जिले का छोटा प्रखंड होने के नाते 2017 में तत्कालीन डीएम रमन कुमार के सौजन्य से तीन पंचायत से बना केसठ प्रखंड को ही आधे अधूरे निर्मित शौचालय को लेकर ओडीएफ घोषित कर दिया था। नमूना के तौर पर केसठ प्रखंड से जिले का अन्य प्रखंड प्रेरणा लेकर शौचालय बनाएगा। इसको लेकर जिला प्रशासन बाहवाही तो खूब लूटा लेकिन लाभुकों के लिए एक वरदान छोड़कर चले गए?। जो 2 से 3000 तक बिचौलियों को पैसा देते हैं उन्हीं का शौचालय का लाभ मिल पाता है। नहीं देने वालों को शौचालय मानक के अनुरूप नहीं होने का हवाला देकर पैसे के लिए टालमटोल किया जा रहा है। जियो टैगिंग के बाद ज्यो ही पैसा मिलने का समय आता है तो फिर नया कानून बन कर सामने आ जाती है।
लेकिन पैसा नहीं आता है। कहीं जिला प्रशासन का यह सोच तो नहीं है कि जितना लेट करो उतना ही पैसे की वसूली होगा। एक तरफ जिला प्रशासन शौचालय बनाने के लिए हाय तौबा करते आ रही है तो दूसरी तरफ लाभुकों के खाते में पैसा डालने में भी आनाकानी कर रही है इस दोहरी नीतियों के खिलाफ प्रशासन के विरुद्ध मोर्चा खोलते हुए एक बैठक के दौरान जिला परिषद धनंजय आर्य ने कहा कि ओडीएफ घोषित होने वाले में जिले का पहला प्रखंड केसठ 2017 में ही ओडीएफ हो चुका है।लेकिन अभी तक 2 से 3000 के भुगतान करने वालों के खाते में पैसा गया है ऐसा क्यों यहां मुसर महादलित और गरीबों का सबसे बड़ी आबादी निवास करती है। एक तरफ शौचालय बनाने पर प्रशासनिक दबाव , तो दूसरी तरफ उससे ज्यादा ओ डी एफ का पैसा निकासी पर ग्रहण लगा हुआ है । ऐसी स्थिति मे एक आदर्श समाज के निर्माण के लिए सुंदर स्वच्छ वातावरण भला कैसे तैयार हो सकता है। आगे उन्होंने कहा कि प्रखंड के समक्ष सङक किनारे ओडीएफ की सच्चाई देखने को मिलती है। जिसके कारण पहले और आज में कोई फर्क देखने को नही मिलता। इसका मुख्य कारण स्वच्छता मिशन के तहत दी जा रही राशि का सही मार्ग दर्शन का अभाव है। शायद लोगों द्वारा शौचालय की दी जा रही सहायता राशि समय से नही मिलना तथा वैसे निर्धन परिवार जिनके पास अपने रहने को घर तक नही भला वो शौचालय कैसे बनाये, इसके साथ ही उन्होंने ने बताया कि वैसे परिवार को सार्वजनिक शौचालय बनाने की बात तत्कालीन डीएम के द्वारा कहा गया था। जो आज तक पूरा नही हो सका। जिप ने आरोप लगाते हुए कहा कि कुछ इस तरह के निर्धन परिवारो को प्रखंड प्रशासन के द्वारा अपने चहेते कर्मचारियो व शिक्षक के माध्यम से शौचालय बनाया गया जो बिचौलियो के बीच लूट का शिकार बन कर रह गया। जो कि सिर्फ शौचालय का ढांचा देखने मिलती है। ऐसे में ओडीएफ का कल्पना करना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वच्छता मिशन का ‘मजाक’ साबित हो रहा है। सबसे अहम बात तो ये है कि शौचालय बनाने वाले लाभूको का गांव के छुट्टी भैया नेताओ के द्वारा बनाए गये शौचालय की सहायता राशि को खाते में डलवाने के नाम पर दो हजार से तीन हजार लेकर उनके खाते में सहायता राशि डलवाने का काम किया जा रहा है और तो और इस प्रखंड के पंचायत में दो-दो सार्वजनिक शौचालय बनाया गया जो कि संसाधन के आभाव में आजतक चालू नही हो सका। जब कि इस शौचालय निर्माण के लिए जिला प्रशासन के द्वारा खुद आम जनता के उपर दबाव बनाया जाता है. जो स्वच्छता अभियान के लिए चिंता का विषय है।
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