नालन्दा।कुमुद रंजन सिंह:जिला मुख्यालय से सटे रहुई प्रखंड के कादी बिगहा अपने विशेष महत्व के लिये विख्यात है , बच्चों के खेल खेल में रहुई प्रखंड के कादी बिगहा गांव में मां काली की पूजा शुरू हुई जो नालंदा ही नहीं आसपास के कई जिलों में विख्यात है।
यही नहीं यहां के जो लोग भी बाहर नौकरी कर रहे हैं वे सब काली पूजा करने गांव जरूर आते हैं।
यहां कब से पूजा हो रही है किसी को नहीं मालूम।
लेकिन कैथी दस्तावेजों के अनुसार 133 साल पूरे हो गए हैं। यहां विजयदशमी को भव्य मेला लगता है लोगों की आस्था है कि यहां गलती करने पर तुरंत उसका दंड मिलता है। ग्रामीणों का कहना है कि तुरंत परिणाम भुगतना पड़ता है।
यहां सप्तमी से दसवीं तक श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। आसपास के ग्रामीणों के अलावा दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और मां के दरबार में मन्नत मांगते हैं मन्नत पूरी होने पर अपनी हैसियत के मुताबिक चढ़ावा चढ़ाते हैं सक्षम लोग आभूषण भी चाहते हैं बताया जाता है कि कई वर्ष पहले कायस्थ परिवार के बच्चे मिट्टी की प्रतिमा बनाकर खेलते थे।
इसी दौरान उनके अभिभावक को मां काली के स्वप्न में आकर प्रतिभा स्थापित कर पूजा करने का आदेश दिया।
तब से ही आयोजन होता आ रहा है।
भभूत है मां का प्रसाद।
यहां का प्रसाद मां के दरबार में हुए हवन भभूत है जिसे अष्टमी की शाम से बांटा जाता है और मध्यरात्रि तक काम चलता रहता है कहा जाता है कि इस दिन पुजारी शंकर मिस्त्री पर माता आती हैं और उस दिन देवास भी लगता है 78 वर्षीय कृष्णनंदन पांडे एवं 67 वर्षीय वासुदेव चौधरी बताते हैं कि सिर्फ माता में ही नहीं बल्कि उनसे जुड़ी हर चीज में अलौकिक शक्ति है। विसर्जन स्थल से लेकर आसन तक पूजा के बाद भी दैविक शक्ति विराजमान रहती है बुजुर्ग ग्रामीण आयशा कई उदाहरण देते हैं जो आस्था से खिलवाड़ के बाद किसी को भुगतना पड़ा है।
पीढ़ी दर पीढ़ी कर रहे हैं प्रतिमा का निर्माण ग्रामीणों की माने दो पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार के लोग प्रतिमा का निर्माण कर रहे हैं बिहार शरीफ के पुल पर में मां की प्रतिमा का निर्माण किया जाता है ग्रामीणों के अनुसार चार दशक पूर्व पैसे की लेनदेन को लेकर कारीगर ने प्रतिमा बनाने से इनकार कर दिया था उस साल बगल के गांव डीहरा में प्रतिमा का निर्माण कराया गया, पूजा संपन्न होने के बाद पूर्व से प्रतिमा बना कर दे रहे कारीगर के घर में समस्या आ खड़ी हुई उसके बाद से मां के दरबार में आकर कारीगर क्षमा याचना की और पुणः प्रतिमा बनाने लगा ,ग्रामीण बताते हैं कि परंपरा कब से चली आ रही है इसकी जानकारी नहीं है लेकिन पूर्वजों से जो सुनने आए हैं उसके मुताबिक का इस परिवार के द्वारा प्रतिमा स्थापित कर काली पूजा की शुरुआत की गई थी।
कालांतर में एक ही परिवार माथे पर लाता है प्रतिमा
कालांतर से एक ही परिवार के लोग मां की प्रतिमा बिहार शरीफ से माथे पर लाते आ रहे हैं सबसे पहले मंगल पासवान माथे पर प्रतिमा लाते थे उनके निर्धन के बाद उनके पुत्र रामवृक्ष पासवान प्रतिमा लाने लगे इनके भी निर्धन के बाद अब उनके बेटा, पोता प्रतिमा माथे पर ला रहे हैं इतना ही नहीं मां का गांव भ्रमण भी कांधे पर कराया जाता है जिसमें कंधा देने के लिए आपाधापी का माहौल रहता है प्रतिमा स्थापित करने वाले काइश्त परिवार के अधिकतर लोग गांव से पलायन कर चुके हैं लेकिन आज भी परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं।
मनोकामना पूर्ण होने पर चढ़ाया जाता है स्वर्ण भूषण।
श्री महाकाली क्लब कादी बिगहा के अध्यक्ष रामदेव चौधरी एवं मेला सुरक्षा समिति के अध्यक्ष राकेश पासवान ने बताया कि हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं और मनोकामना पूरा होने पर अपने हैसियत के मुताबिक चढ़ावा चढ़ाते हैं ,हर साल दर्जनों भक्त ऐसे हैं जो माता के सिंगार में सोने व चांदी के मुकुट छल्ला नथिया व पायल चढ़ाते हैं। इन चढ़ाबो का कोई दुरुपयोग नहीं कर सकता है।
कब शुरू हुआ नहीं पता
यहां कब से पूजा हो रही है किसी को नहीं पता है लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा जारी है हालांकि गांव में कैथी भाषा में लिखा हुआ एक रजिस्टर है जिसके अनुसार 1985 में इस गांव के लोगों ने नवरात्रा शताब्दी वर्ष बनाया था।
संस्था के सचिव का पदभार एक ही परिवार के लोग संभाल रहे हैं पहले गौरी शंकर राय सचिव थे निर्धन के बाद उनकी पुत्री नूतन श्रीवास्तव सचिव हैं और वह अभी पटना में हैं।
पर नवरात्रि में जरूर आती हैं।
दशमी के दिन बगीचे में लगता है मेला
दशमी के दिन माता की मूर्ति के साथ हजारों ग्रामीण गांव की परिक्रमा करते हैं ब गोदी भराई का रश्म किया जाता है साथ बगीचे में मूर्ति स्थापित कर मेले की शुरुआत की जाती है, मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम ब तरह तरह के झूले मिठाइयों की दुकानें सजी होती है ,गांव के तालाब में मूर्ति का विसर्जन का परंपरा चली आ रही है।
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