विद्या भूषण श्रीवास्तव
————————-
छपरा कार्यालय
——————-
ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव ।
यद् भद्रं तन्न आ सुव
यजुर्वेद का यह प्रसिद्ध मंत्र सूर्य की महिमा का बखान करते हुए कहता है कि सृष्टि के उद्भव के कारण है सूर्य।लोक जीवन में भी सूर्य की उपासना अलग अलग विधि-विधान से करने की चलन है।भोजपुरी क्षेत्र में सूर्य का यह व्रत लोकमहा पर्व के रूप में मनाया जाता है जो छठ के नाम से मशहूर है।
——
चार दिवसीय पवित्रता और शुद्धता का पर्व है छठ
—————
छठ महापर्व कई मायनों में अन्य पर्वों से अपना विशेष स्थान रखता है।गृहस्थ जीवन ऐसे ही कठिन जीवन माना जाता है इसमें अगर चार दिवसीय कोई अनुष्ठान करना हो तो और भी कठिन हो जाता है हमारी दिनचर्या।पहला दिन नहा खा, दूसरा दिन खरना तीसरा दिन घाट पर जाना और चौथे दिन घाट से लौटना कहा जाता है।इन चारों दिन व्रती शुद्धता का खास ख्याल रखते हैं।
————————–
15 दिनों पूर्व से होती है तैयारी
———————-
कार्तिक मास शुरू होते ही छठ पर्व की तैयारी में लोग लग जाते हैं।प्रवासी भी अपने-अपने गांव आकर पूरे परिवार के साथ यह पर्व मनाना ज्यादा पसंद करते हैं।हालांकि आधुनिक जीवन शैली ने सब कुछ बदल दिया है।बड़े बड़े महानगरों कोलकाता, दिल्ली आदि गये प्रवासी बिहारियों के कारण यह पर्व दिन ब दिन ख्याति अर्जित कर रही है।15 दिन पहले से पूरा घर और गांव में साफ-सफाई से लेकर गीत गूंजने लगते हैं छठ माई का तो पूरा वातावरण छठ मय और भक्तिमय हो जाता है।
———————
गुड़ और आटे से बना ठेकुआ प्रसाद की महता
छठ के प्रसाद में ठेकुआ का खासा महत्व है।इसका निर्माण खुद व्रती आटे और गुड़ को मिला कर मीठी आंच पर बनाता है।खरना के दिन रोटी और गुड़ से बना खीर भी खास प्रसाद है।यह प्रसाद सीधे कृषि कार्य से जुड़ा है।ठेकुआ के साथ सामयिक फल भी प्रसाद के रूप में उपयोग होता है।खास कर ईख का उपयोग जरूरी माना जाता है।जिससे कोसी भरा जाता है।
पारम्परिक छठ गीतों में जीवंत है छठ की महिमा
लोक महा पर्वों की एक खास विशेषता रही है कि इन अवसरों पर गाये जाने वाले पारम्परिक गीत।हजारों साल से छठ के प्रसिद्ध गीतों से छठ पूजा की महत्ता को रेखांकित किया जा सकता है।छठ मैया के प्रति शुद्धता का ख्याल व्रती कैसे रखते हैं इसकी बानगी इस गीत में देखा जा सकता है..
केरवा जे फरेला घवद से ओहपर सुग्गा मेडरास,सुगवा के मरबो धेनुष से सुग्गा जईहेअं मुर्छाय।
ध्यान देने की बात है कि सुग्गे को जान से मारने की नहीं बल्कि थोड़ी देर के लिए मुर्छा करने की कल्पना इस गीत में की गई है।एक अन्य और प्रसिद्ध गीत में व्रती और एक बटोहिया में संवाद गीत के माध्यम से सुनने को मिलता है–
कांच ही बांस के बहंगिया ;बहंगी लचकत जास।
बाट जे पुछेला बटोहिया ई बहंगी केकरा के जास।।
तू त आंधर हई रे बटोहिया ई बहंगी छठी माई के जास।
छठी मैया भी भक्तों पर रखती हैं कृपा
छठी मैया को संतान प्रदाता के रूप में माना जाता है।माना जाता है कि पवित्र और निश्छल मन से किया गया व्रत से छठी मैया प्रसन्न हो कर व्रती महिला का आंचल भर देती हैं।यही कारण है कि कार्तिक से भी कठिन चैती छठ भी मनौती के रूप में व्रती करते हैं।छठ मैया भी व्रती का कितना ख्याल रखती है इसे पारम्परिक गीत में देखा जा सकता है जहां व्रत का अंतिम अर्ध्य का समय हो रहा है नाव पर सवार होकर छठी मैया नाव पर सवार होकर आ रही हैं।नाव खेने वाले मल्लाह से छठी मैया कहती है:-
जल्दी जल्दी खेइहे नैया रे मल्लहा भइले अर्घ्य के बेर।
चार दिन के भूखल तिवइया बाट जोहेली हमार।।
लोकगायक रामेश्वर गोप कहते हैं कि सूर्य के इस महान पर्व का सारा दर्शन गाये जाने वाले पारम्परिक लोकगीतों में निहित है।सृष्टि की उत्पति के कारण सूर्य देव की पूजा उनकी शक्ति के रूप में की जाती है और इस शक्ति का नाम शायद छठ है।शक्ति तो स्त्री में ही रही है।यह लोक महा पर्व अब वैश्विक रूप से फैल गया है।आने वाले वर्षों में यह पर्व पूरी दुनिया में मनाया जायेगा।
लोक गायक और प्रयोगधर्मी संगीतकार उदयनारायण सिंह कहते हैं कि आज स्वच्छता के लिए अभियान चलाया जा रहा है पर हजारों वर्ष से हमारे छठ पर्व का यह पारम्परिक गीत स्वच्छता का संदेश देता रहा है जहां खुद छठ मैया भक्तों से कहती रही हैं :-
कोपी कोपी बोलेली छठी माई सुनी ऐ सेवक लोग
मोरा घाटे दुबिया उपजी गईले मकड़ी बसेर कईले।
और भक्त सफाई अभियान में सामुहिक रूप से जुट जाता है।
Comments are closed.