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इप्टा राष्ट्रीय प्लैटिनम जुबली समारोहः बिदेसिया की प्रस्तुति से रंगमंच के राष्ट्रीय फलक पर चमका छपरा, देश के नामचीन समीक्षों ने छपरा इप्टा की प्रस्तुति की जमकर सराहना

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डॉ.विद्या भूषण श्रीवास्तव/छपरा(सारण)। इप्टा राष्ट्रीय प्लैटिनम जुबली समारोह के चौथे दिन राष्ट्रीय जननाट्य समारोह में छपरा के कस्बाई रंगमंच को अमित रंजन के निर्देशन बिदेसिया की प्रस्तुति से राष्ट्रीय रंगमंच के फलक पर एक विशिष्ट पहचान मिली तो वहीं निर्देशक को भी।

तृप्ति मित्रा जोहरा सहगल प्रेक्षागृह (प्रेमचंद रंगशाला) में सोमवार की दूसरी प्रस्तुति छपरा इप्टा की प्रस्तुति विदेसिया थी। भिखारी ठाकुर के आलेख को अमित रंजन ने निर्देशित किया था। बिदेसिया में निर्देशक ने. पारंपरिक शैली का निर्वाह करते हुए इसमें शास्त्रीय संगीत की राग रागिनियों और कत्थक का बड़ा कलात्मक प्रयोग कर नाटकीय कथ्य को न सिर्फ एक नया फ्लेवर दिया बल्कि नाटक की मार्मिकता और भी उभर कर सामने आई जिसे देश के सुधि रंग समीक्षकों और दर्शकों ने काफी सराहा।
नाटक में केन्द्रीय पात्र प्यारी सुंदरी की भूमिका में सारण की वीरांगना बहुरिया रामस्वरूपा देवी की परपोती और नौंवी की छात्रा अर्चिता माधव ने अपने संवेदनशील अभिनय, सधे गायन और कसे नृत्य से चमत्कृत कर दिया। बिदेशी के रुप में रंजीत गिरि जमे। सलोनी के रुप में शिवांगी सिंह ने बेहतर अभिनय किया। बटोही की भूमिका में अभिजीत कुमार सिंह ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुत किया। देवर की भूमिका में मुन्ना कुमार ने अपने दमदार अभिनय से प्रभावित किया। जोकर के रुप में संभव संदर्भ ने अपनी भूमिका को बड़ी शिद्दत से जीया। ग्रामीणों की भूमिका में संस्कार वर्मा, संचय वर्मा और पुत्रों की भूमिका में प्रेम मंगलम तथा युवराज किशन ने अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया।
इप्टा के छपरा इकाई के जिला अध्यक्ष अमित रंजन ने बताया कि नाटक को उत्कर्ष प्रदान करने में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका इसके रंगसंगीत की रही जिसे संगीत निर्देशक द्वय कंचन बाला और शरद आनन्द ने बड़े परिश्रम से तैयार किया था जो एक बड़ी उपलब्धि बन गया। समाजियों आनन्द किशोर मिश्रा, पम्मी मिश्रा, उज्ज्वला पाठक, संस्कार, संचय, रवि कुमार और वादकों राज किशोर मिश्रा, विनय कुमार विनू तथा श्याम सानू ने नाटक के उत्कर्ष में बड़ी महत्त्वपूर्ण भुमिका निभाई। रुपसज्जा प्रसिद्ध रंगकर्मी और रंग परिकल्पक राजीव रंजन श्रीवास्तव ने किया तो वहीं प्रकाश राजकपूर का रहा।

इधर बलराज साहनी प्रेक्षागृह (कालिदास रंगालय) में नागपुर इप्टा के द्वारा मसीहा नाटक प्रस्तुत किया गया। मराठी लोककथा पर आधारित यह नाटक जन संघर्षों की आवाज़ को बुलंद करता है। नाटक के लेखक शैलेश नावड़े और निर्देशक रूपेश पवार थे।

दूसरी प्रस्तुति अल्टरनेटिव लिविंग थिएटर, कोलकाता की रही। प्रोबीर गुहा के आलेख लांग मार्च को शुभदीप गुहा ने निर्देशित किया।

वही दूसरी ओर तृप्ति मित्रा – जोहरा सहगल प्रेक्षागृह (प्रेमचंद रंगशाला) में तीन नाटकों का मंचन हुआ। पहला नाटक राजस्थान जयपुर इप्टा की थी। जॉन स्टेनबेक के आलेख पर रमेश कोठारी के निर्देशन में तैयार किया गया नाटक ऊंदरा दो खानाबदोश भूमिहीन मजदूरों की कहानी है। जो रोजगार की तलाश में इधर उधर भटकते रहते हैं। एक ऐसे दौर में जब हर आदमी आपाधापी में पड़ा है और जिंदगी की चूहा दौड़ में औरों को कुचल कर आगे बढ़ जाने के लिए परेशान है। नाटक के नायक लोरी और जग्गू एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ते हैं। नाटक में कलाकारों ने इंसान का इंसान से और इंसान का जानवर से रिश्ते को भी परिभाषित किया। ऊंदरा यथार्थवादी होने के साथ दार्शनिक नाटक भी है। जिसके संवादों में जीवन का दर्शन भी देखने को मिला। जयपुर इप्टा से जुड़े इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणवीर सिंह ने बताया कि इस नाटक को नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है।

अंत में इलाहाबाद इप्टा द्वारा नाटक असमंजस बाबू का मंचन किया गया।

इसी के साथ राष्ट्रीय जन नाट्य समारोह समाप्त हो गया। तीन दिनों तक चले राष्ट्रीय जन नाट्य समारोह में कुल 11 नाटक प्रस्तुत किए गए।

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